वीडियो जानकारी: शास्त्र कौमुदी, 30.04.2022, ग्रेटर नॉएडा
प्रसंग:
अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम्।
तथापि त्वं महाबाहो नैवं शोचितुमर्हसि।।
और यदि इस आत्मा को तुम सदा उत्पन्न और सदा मरणशील समझते हो,
तो भी हे दीर्घबाहु अर्जुन! इसके लिए तुम्हें शोक नहीं करना चाहिए।
श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय २, श्लोक २६)
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।।
क्योंकि जन्म लेने वाले की मृत्यु निश्चित है और मृत व्यक्ति का पुनर्जन्म अवश्य होता है,
इस कारण अवश्यम्भावी विषय में तुम्हें शोक नहीं करना चाहिए।
श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय २, श्लोक २७)
अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत।
अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना।।
हे अर्जुन, प्राणियों के शरीर सृष्टि के आरंभ में अव्यक्त थे, इस स्थिति काल में व्यक्त हैं।
विनाश के बाद वे पुनः अव्यक्त हो जाएँगें, शोक की क्या बात है?
श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय २, श्लोक २८)
आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेन माश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः।
आश्चर्यवच्चैनमन्यः श्रृणोति श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित्।।
कोई आत्मा को आश्चर्य की तरह देखता है, कोई इसे आश्चर्यमय अलौकिक रूप से बताता है,
कोई आत्मा को आश्चर्य की तरह सुनता है, और फिर कोई ऐसा भी होता है जो सुनकर भी समझ नहीं पाता।
श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय २, श्लोक २९)
संगीत: मिलिंद दाते
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